गाँधी जयंती विशेष - जिनके ज़िक्र के बिना अधूरी है आज़ादी की दास्तान

रत्ना शुक्ला आनंद आवाज़ ए ख़्वातीन


महात्मा गाँधी ने महिलाओं के भीतर आज़दी की अलख जगाई 

गाँधी जी के सिद्धांतों, सामाजिक प्रथाओं और असमानता के खिलाफ़ उनके विचारों ने न केवल उस समय के प्रगतिशील पुरुष समाज को बल्कि हर वर्ग, धर्म और जाति की महिलाओं को प्रभावित किया। यही वजह थी कि गाँधी जी के स्वाधीनता आन्दोलनों में महिलाओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।


क्यूँ महत्वपूर्ण है महिलाओं का योगदान 

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई भारतीय महिलाओं के योगदान के बिना अधूरी है। पुरुषों के लिए इन आंदोलनों का हिस्सा होना आसान था, लेकिन महिलाओं को आंदोलन तक पहुँचने से पहले ही समाज की अनगिनत बेड़ियों का तोड़ना पड़ता था, इसके बाद भी कई भारतीय महिलाओं ने इस संघर्ष में हिस्सा लेकर देश को आजादी दिलाई। कमलादेवी चटोपाध्याय, सरोजिनी नायडू, भीकाजी कामा, अरुणा आसफ़ अली, विजया लक्ष्मी पंडित, सुचेता कृपलानी, सावित्रीबाई फुले,सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू और दुर्गाबाई देशमुख, कनकलता बरुआ जीवनी, पंडिता रमाबाई सरस्वती, वेलु नचियार,  हंसा मेहता, कित्तूर रानी चेन्नम्मा  कुछ ऐसे ही नाम हैं। लेकिन कुछ ऐसी ही और भी वीरांगनाएं हुई हैं जिन्होंने भारत को आजाद कराने में शायद अधिक संघर्ष किया क्यूंकि ये संघर्ष पर्दे से निकलकर घर की दहलीज को पार करने का भी था।


सारी वर्जनाएं तोड़कर जब मुस्लिम महिलाएँ आज़ादी के यज्ञ उतरीं 


बेगम हजरत महल


बेगम हजरत महल अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी थीं। ब्रिटिश सरकार ने जब नवाब को  सत्ता से बेदखल कर गिरफतार कर लिया तब उन्होंने मटियाबुर्ज से वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। 

दिया तब लेकिन जनता उन्हें बहुत चाहती थीं। 1857 की क्रांति की अगुवाई अवध क्षेत्र में बेगम हज़रत महल ने की। उन्होंने लखनऊ पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें देश निकाला देकर नेपाल भेज दिया।


आबादी बानो बेगम 


आबादी बानो बेगम को बी अम्मां के नाम से भी जाना जाता है। ये रामपुर के एक रुढ़ीवादी परिवार में जन्मीं थीं लेकिन अपने दृढ़ संकल्प और साहस के दम पर इन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। बी अम्माँ वह पहली मुस्लिम महिला थीं जिन्होंने बुर्के में निकलकर पहला भाषण दिया और आजादी की लड़ाई में बढ़ - चढ़कर हिस्सा लिया। अपने स्वतंत्रता सेनानी बेटे की गिरफ्तारी को विरोध करने के लिए इन्होनें सबसे पहले घर से  बाहर कदम रखा। बी अम्माँ ने 1917 में आल इंडिया मुस्लिम लीग की बैठक में भी अपने ओजपूर्ण भाषा से लोगों के दिल को छू लिया। 


बीबी अम्तुस सलाम  


बीबी अम्तुस सलाम पटियाला के एक रूढ़िवादी लेकिन कुलीन मुस्लिम परिवार से थीं। परिवार में पर्दे के चलन के कारण उन्हें शिक्षा प्राप्त नहीं हो पाई

गाँधी जी के विचारों से प्रभावित बीबी हिंदू-मुस्लिम एकता की पक्षधर थीं। बचपन से बीमार रहने के कारण वह काफी कमज़ोर थीं। उनके फेफड़े कमज़ोर थे इसके बावजूद उन्होंने अपनी मज़बूत इच्छाशक्ति के दम पर स्वाधीनता के लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाया। बीबी अम्तुस सलाम गाँधी जी के अहिंसा के सिद्धांत से खासी प्रेरित थीं और हमेशा से सेवाग्राम में रहना चाहती थीं लेकिन स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण उन्हें शुरुआती दौर में इसकी इजाज़त नहीं मिली लेकिन जब वह आश्रम पहुंचीं तब उन्होंने स्वयं को आश्रम के सख्त औऱ कठोर अनुशासन में ढाल लिया। उन्होंने खादी आंदोलन में हिस्सा लिया और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बैठकों में हिस्सा लिया। उन्हें इसके लिए जेल भी जाना पड़ा। आज़ादी के बाद भी उन्होंने हरिजन कल्याण और हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए अपने प्रयासों को जारी रखा और आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हों हिन्दुस्तान नामक एक उर्दू पत्रिका भी निकाली जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव था।


हाजरा बेगम


हाजरा बेगम रामपुर के एक धनी परिवार से थीं। उनकी उच्च शिक्षा ब्रिटेन में हुई ब्रिटेन में अपनी पढ़ाई के दौरान वह भारत में ब्रिटिश हुकूमत की सच्चाई से वाकिफ़ हुईं। वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने वाली पहली भारतीयों में से एक थीं । भारत आकर वह इलाहाबाद में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय हो गईं इसके बाद अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की आयोजन सचिव बनीं। हाजरा आपा के नाम से लोकप्रिय हाजरा बेगम ने न केवल स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लिया बल्कि समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे असमानता और लिंग भेद के खिलाफ़ भी काम किया। 


रेहाना तैयबजी 


महात्मा गाँधी के साथ स्वाधीनता की लड़ाई में अगर सबसे पहला नाम आता है तो वह हैं रेहाना तैयबजी। इनका जन्म गुजरात के एक धनी व शिक्षित परिवार में हुआ था। घर पर देशभक्ति का माहौल था ऐसे में कम उम्र में ही रेहाना तैयब जी का रुझान ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफ़ आवाज़ उठाने का था। 

मुसलमान होते हुए भी उनकी सभी धर्मों के भक्ति संगीत की ओर आसक्ति थी। आध्यात्मिक स्वभाव होने के कारण उनके भीतर करुणा और समानता की भावना थी। भिन्न भिन्न धर्मों के सम्बन्ध में उनके विचार धर्मनिरपेक्षता से परिपूर्ण थे, रेहाना के इन्ही गुणों के कारण गांधीजी उनसे विशेष रूप से प्रभावित थे। रेहाना गाँधी जी के साथ सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में जुड़ी हुई थीं। बाद में उन्होने गांधी जी एवं उनके आश्रम की जीवन शैली को अपना लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहुत से आंदोलनों में भाग लिया. उन्होंने असहयोग आंदोलन तथा बहिष्कार आंदोलन को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जनमानस में स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की अलख जगाई। रेहाना तैयब जी की मुख्य भूमिका फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश नीति के खिलाफ़ लोगों को जागरूक करने में रही। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी गिरफ्तारी भी हुई और एक साल वह जेल में रहीं। 

रेहाना तैयब जी कांग्रेस के अधिवेशनों में वन्दे मातरम गाने वाली पहली महिला थीं।  छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ़ वह लगातार मुखर रहीं। बाल विवाह के खिलाफ़ शारदा एक्ट पास करवाने में उनकी मुख्य भूमिका रही।


नई पीढ़ी के लिए हैं प्रेरणास्त्रोत 

1857 के पहले स्वाधीनता आंदोलन से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक इन महिलाओं ने अपने घर का आराम सब त्याग दिया और कंधे से कंधा मिलाकर देश को आज़ाद कराने में जुटी रहीं आजाद भारत में भी नए भारत के निर्माण में इन महिलाओं का योगदान काबिले तारीफ है। लेकिन आज ज़रूरत है इन वीरांगनाओं के त्याग और बलिदान को याद करने की जो नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

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