मानसिक सेहत को क्या हम नज़रंदाज कर रहे हैं ?

 


रत्ना शुक्ला आनंद/ आवाज़ ए ख़्वातीन

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस विशेष

एक छोटे से शहर का हंसता खेलता परिवार, माता-पिता और तीन बेटे, पिता इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर और तीनों बेटे देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद देश विदेश में नाम कमा रहे हैं। एक नज़र में सब कुछ परफेक्ट, वक्त बीता, पिता सेवानिवृत्त हुए, कुछ समय बेटों के पास आने जाने के बाद अचानक उन्होंने बातचीत करना बंद कर दिया शून्य में ताकते रहते, डॉक्टर को दिखाया तो मालूम हुआ कि गहन अवसाद में हैं।

दफ्तर में साथ काम करने वाले सहकर्मी से रोज़ाना रुबरु होने वाली पारुल ने कभी सोचा भी नहीं कि उसका सहकर्मी धीरे-धीरे मानसिक रोग की ओर बढ़ रहा है,  लेकिन जब कई दिन तक उसे दफ्तर में नहीं देखा तो मालूम हुआ वो घर से अचानक कहीं चला गया और बहुत खोजने पर मिला, लेकिन मानसिक तौर पर अस्थिर।

ये दोनों उदाहरण देश के बुज़ुर्ग और युवा वर्ग की मानसिक सेहत को बयान कर रहे हैं, लेकिन जब मैं ये लेख लिख रही हूँ औऱ आप इसे पढ़ रहे हैं उसके बीच जाने कितने लोग कई तरह की मानसिक अस्थिरता से गुज़र रहे हैं, बिल्कुल शांत, चुपचाप दबे पाँव कब ये अवसाद हमें या हमारे आसपास के लोगों को घेरने लगता है पता ही नहीं लगता।


कैसा है भारत के लोगों का मानसिक स्वास्थ्य 


भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने भारत में मानसिक रोगों पर 2017 में एक व्यापक सर्वेक्षण और अध्ययन किया जिसमें पाया गया कि भारत में हर सात में से एक व्यक्ति मानसिक रोग से पीड़ित है। अध्ययन में पाया गया कि 4.57 करोड़ लोग अवसाद और 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित हैं। लगभग 20 करोड़ लोगों में डिप्रेशन यानी अवसाद, एंग्जाइटी या चिंता, शिजोफ्रेनिया, बाईपोलर डिस्ऑर्डर और ऑटिज्म जैसी मानसिक बीमारियां पाई गईं। डिप्रेशन और एंग्जाइटी सबसे सामान्य रूप से मिलने वाली समस्याएं थीं। इन दोनों का असर भारत में बढ़ता दिख रहा है। 1990 से 2017 के बीच भारत में मानसिक बीमारी के रोगियों की दोगुनी हो गई है। एम्स के मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर मंजू मेहता के मुताबिक "लोग चुपचाप मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं उन्हें या उनके घर वालों को मालूम भी नहीं कि उनका बदला हुआ स्वभाव दरअसल किसी मानसिक समस्या का संकेत है, ये स्थिति बेहद पीड़ादायक है"।


कैसी है महिलाओं की मानसिक सेहत 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में 10 फीसदी गर्भवती महिलाएं और माँ बनने के बाद 13 फीसदी महिलाएं अवसाद की शिकार होती हैं। जबकि विकासशील देशों में 15.6 फीसदी गर्भवती और 19.8 फीसदी महिलाओं में माँ बनने के बाद अवसाद के लक्षण पाए गए हैं। दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक और परामर्शदाता डॉ संजीता प्रसाद के मुताबिक़ "महिलाओं में तनाव, चिंता, बेचैनी, नींद न आना, सोते समय सिर में दर्द, अकेलापन और अधिक गुस्सा आने के साथ-साथ चिड़चिड़ापन अधिक देखने को मिल रहा है"।


कोविड-19 के बाद मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर 

कोविड-19 ने जहां कई लोगों के अपनों को उनसे हमेशा के लिए दूर कर दिया तो वहीं रोज़गार के संकट ने भी लोगों को बुरी तरह तोड़कर रख दिया। इसका सीधा असर पारिवारिक तनाव और मानसिक परेशानी के तौर पर सामने आ रहा है। यही नहीं लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए भी मजबूर हुए हैं। लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम ने पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक असर डाला क्यूंकि ख़ास तौर पर नौकरीपेशा महिलाओं पर दोगुना भार आया। 

जाने-माने मनोचिकित्सक और डिजिटल मेंटल हेल्थ के अध्यक्ष डॉ संदीप वोहरा के मुताबिक "बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी में कोविड-19 के बाद मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समस्याएं देखने को मिल रही हैं। पुरुष और महिलाएं दोनों ही मानसिक रुप से परेशान होने के चलते अस्पताल आ रहे हैं लेकिन महिलाओं की स्थिति अधिक गंभीर है क्योंकि वे अपने मन की बात बताने में सहज नहीं होती हैं। उन्होंने कहा कि दूसरी लहर के बाद से इन मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ गई है"।


मानसिक स्वास्थ्य पूरी दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी महामारी 

हालिया आँकड़ों के मुताबिक दुनिया भर के करीब 13 प्रतिशत लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी के शिकार हैं। कोविड-19 ने दुनिया भर में औसतन 40 फीसदी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को किसी ना किसी तरह प्रभावित किया है। पूरी दुनिया के करीब 98 करोड़ लोग मानसिक तौर पर प्रभावित हैं जबकि करीब 30 करोड़ लोगों में चिंता या तनाव पाया गया है। पुरुषों में ये मामले 9.3% तो महिलाओं में 11.9% हैं। वहीं मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों की मृत्यु दर भी दूसरी बीमारियों के मुकाबले अधिक है।


बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की तरफ ध्यान देना है ज़रूरी 

ऑनलाइन शिक्षा ने बच्चों की शरीरिक और मानसिक सेहत पर बहुत अधिक असर डाला है। बच्चों में उदासी, आत्मविश्वास में कमी, गुस्सा, चिड़चिड़पन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सोशल मीडिया भी किशोरों या युवाओं को डिप्रेशन की ओर ले जाने का कारण बनता है. बच्चों का एक दूसरे के साथ मिलना नहीं हो पा रहा वह पढ़ाई, दोस्ती और मनोरंजन हर चीज़ के लिए डिजिटल माध्यम पर निर्भर हैं ऐसे में उनके बीच गलतफ़हमी,  सोशल मीडिया पर आपके पोस्ट पर कोई एक्सप्रेशन न आना बच्चों के कोमल मन पर विपरीत असर डाल रहा है। बच्चों में एकाकीपन और भावनात्मक बोझ भी बढ़ गया है। वहीं बच्चों पर पढ़ाई लिखाई के अलावा अन्य गतिविधियों संगीत, डांस, खेल और कला में भी बेहतर करने का दबाव है जो मौजूदा दौर में और भी बढ़ गया है क्यूंकि सबकुछ ऑनलाइन है।


भारत में मनोचिकित्सकों की है कमी 

साइंस मेडिकल जर्नल लैनसेट की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10 ज़रूरतमंद लोगों में से सिर्फ़ एक व्यक्ति को डॉक्टरी मदद मिलती है। यूएसए में जहां करीब 60 हज़ार मनोचिकित्सक हैं वहीं भारत में ये संख्या 4 हज़ार से भी कम है। जबकि भारत में  15 से 20 हज़ार मनोचिकित्सकों की ज़रूरत है। भारत में मानसिक समस्या से ग्रसित लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है, और आने वाले दस सालों में दुनिया भर के मानसिक समस्याओं से ग्रसित लोगों की एक तिहाई संख्या भारतीयों की हो सकती है. अगर हम इसके कारणों की तरफ जाएं तो पाएंगे कि भारत में शहरीकरण तेजी से हुआ है, परिवारों का विघटन, एकल परिवार, संवादहीनता, अकेलापन, भावनात्मक दूरी और काम के बोझ ने मानसिक तनाव को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लिहाज़ा डिप्रेशन जैसी समस्या के बढ़ने की आशंका है। हालांकि लोगों में अब मानसिक सेहत की समझ पैदा होने लगी है लेकिन समाज का एक तबका इस पर खुल कर बातें करना पसंद नहीं करता। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सामान्य चिकित्सा सेवाओं में शामिल कर लोगों की झिझक दूर करने की जरूरत है। 


कैसे पहचाने सामान्य मानसिक विकार 

विशेषज्ञों के मुताबिक सामन्य 30-40 फ़ीसदी लोग कॉमन मेंटल डिस्ऑर्डर से प्रभावित हैं लेकिन वह नहीं समझ पाते हैं कि ये एक बीमारी हैं.

सामन्य तौर पर देखे जाने वाले लक्षण जैसे किसी भी काम में मन न लगना, शरीर में कोई बीमारी न होने के बावजूद थकान महसूस करना, नींद आते रहना, बहुत चिड़चिड़ापन, गुस्सा या रोने का मन करना होने पर सतर्क हो जाएं। इसी तरह बच्चों के व्यवहार में अचानक बदलाव, स्कूल जाने के लिए मना करना, गुस्सैल हो जाना, आलसी हो जाना या बहुत एक्टिव हो जाना. अगर ये लक्षण लगातार दो हफ़्ते तक रहते हैं तो ये किसी मानसिक विकार का कारण हो सकते हैं। मानसिक समस्या से पीड़ितों की पहचान की जानी चाहिए ताकि समय रहते इन्हें इलाज मिल जाए।


कैसे रखें अपना मानसिक स्वास्थ्य दुरुस्त 

सकारात्मक सोच रखने की कोशिश करें। इसके लिए संगीत, ध्यान, योग, अच्छी किताबों का साथ लें।  अपने परिवार और मित्रों से बात करें। खुश रहने की कोशिश करें। व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें इससे  दिमाग में एन्डॉर्फिन रसायन रिलीज होता है, जिससे मूड बेहतर होता है। सवेरे की सैर आपको सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर करती है। हमेशा कुछ न कुछ नया सीखते रहें। अपने आप से प्यार करें। सोशल मीडिया को खुद को खुश रखने और कुछ नया सीखने का माध्यम बनाएं। हमेशा एक बात का ख़याल रखें कि ज़िंदगी में हमेशा सब कुछ परिवर्तनशील है और हमेशा इसके लिए स्वयं को तैयार रखें।

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