अग्नि की उड़ान, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जन्मदिवस विशेष
रत्ना शुक्ला आनंद/ आवाज़ ए ख़्वातीन
कलाम की प्रेरणा से "अग्नि की उड़ान" भरने वाली महिला अंतरिक्ष विज्ञानी
भारत को परमाणु शक्ति संपन्न करने से लेकर आधुनिक स्वदेशी मिसाइल बनाने में सक्षम बनाने वाले ‘मिसाइल-मैन’ अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम यानी डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की आज 90 वीं जयंती है। लेकिन बेहद संघर्षमय जीवन और साधारण जीवन को असाधारण बना देने वाले कलाम देश के करोड़ों युवाओं के आदर्श हैं। कलाम ने हमेशा युवाओं को अपनी क्षमता को पहचानने, परखने और उसे सही दिशा देने का मार्ग सुझाया और उसी पथ पर अग्रसर होकर देश को कुछ ऐसी महिला अंतरिक्ष विज्ञानी मिलीं जिन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में विशेष स्थान प्राप्त किया। अमूमन पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र अंतरिक्ष में महिलाओं ने अपनी इच्छाशक्ति, प्रेरणा और प्रतिबद्धता से नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। आज ये महिला वैज्ञानिक हमारे देश के मिसाइल कार्यक्रम से लेकर अंतरिक्ष अभियानों और सुदूर अन्वेषण जैसे कार्यक्रमों का न केवल हिस्सा हैं बल्कि उनका सफल नेतृत्व भी कर रही हैं। आवाज़ ए ख़्वातीन आज इस मौक़े पर ऐसी ही महिला अंतरिक्ष विज्ञानियों से आपको परिचित कराने का प्रयास करेगा जिनके सपनों को उड़ान डॉ कलाम ने दी, और आज भी डॉ कलाम एक अग्निपुंज की भांति उन्के भीतर जीवित हैं।
टेसी थॉमस
भारत की 'मिसाइल-वुमन' के नाम से जानी जाने वाली
टेसी थॉमस केरल से हैं, और भारत की प्रक्षेपास्त्र वैज्ञानिक हैं। भारत में प्रक्षेपास्त्र परियोजना का प्रबन्धन करने वाली वह पहली महिला हैं। वह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में अग्नि चतुर्थ की परियोजना निदेशक एवं एरोनाटिकल सिस्टम्स की महानिदेशक थीं।
बचपन रहा संघर्ष पूर्ण लेकिन विज्ञान से लगाव की वजह रही अनोखी
टेसी थॉमस केरल के अलपुजा की रहने वाली हैं। महज़ 13 वर्ष की उम्र में पिता पक्षाघात से पीड़ित हो गए जिस कारण पाँच भाई बहनों की परवरिश माँ ने की। हालांकि सभी की अध्ययन में रुचि तो थी ही साथ ही थुम्बा राॅकेट स्टेशन के निकट बचपन बीतने से उनकी रुचि प्रक्षेपास्त्रों में हुई। उन्होंने इंस्टिट्यूट ऑफ आरमामेंट टेक्नोलोजी, पुणे से एम टेक करने के बाद डीआरडीओ से पीएचडी की।
कलाम रहे प्रेरणा स्रोत
थॉमस स्वयं केरल की रहने वाली हैं, यही वजह है कि पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का असर उनपर पहले से ही था परंतु डीआरडीओ में आकर जब वह अग्नि प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम से जुड़ीं तो कलाम उनके प्रेरणास्त्रोत बन गए। टेसी थॉमस अग्नि-2, अग्नि-3 और अग्नि-4 प्रक्षेपास्त्र की मुख्य टीम का हिस्सा रहीं।
टेसी अग्नि-4 मिसाइल की परियोजना निदेशक भी रह चुकी हैं। अग्नि मिसाइलों में उपयोग होने वाले मार्गदर्शन योजना को तैयार करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है यही वजह है कि उन्हें अग्नि पुत्री के नाम से भी जाना जाता है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के मिसाइल प्रोजेक्ट में महिलाओं ने मुख्य भूमिका निभाई और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इस कार्यक्रम में करीब 20 महिलाएँ शामिल रहीं जिनके लिए टेसी थॉमस स्वयं भी प्रेरणास्रोत बनीं।
ऋतु करीधल
ऋतु करीधल भारत की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना चंद्रयान-2 में मिशन निदेशक रहीं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में ऋतु मार्स ऑर्बिटर मिशन- मंगलयान का हिस्सा रहीं। अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए प्रभावी एवं किफायती तकनीकों को विकसित करने में उनका विशेष योगदान है।
आकाश को निहारती रहती थीं ऋतु
उत्तर प्रदेश के लखनऊ की ऋतु की रुचि बचपन से अंतरिक्ष विज्ञान में थी। वह आकाश, तारों और चंद्रमा की संरचना, आकार में बदलाव को देखा करतीं उसके पीछे का रहस्य जानने के लिए उत्सुक रहतीं। इसरो और नासा से संबंधित ख़बरें पढ़ा करतीं। पिता रक्षा सेवा में थे इसीलिए शिक्षा में कोई कमी नहीं उन्होने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और यहीं से अंतरिक्ष विज्ञान की यात्रा शुरू हुई।
भारत की रॉकेट वुमन कहलाती हैं ऋतु करीधल
चंद्रयान मिशन में ऋतु की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण रही और उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2007 में इसरो यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया। ऋतु के मुताबिक अपने सपनों की उड़ान भरने की प्रेरणा और ऊर्जा उन्हें डॉ कलाम से मिली जब उन्होंने अपने भीतर की प्रतिभा को पहचाना और उसे हासिल करने में दिन रात एक कर दिया।
मुथैया वनिता
तमिलनाडु की मुथैया वनिता को इसरो की पहली महिला परियोजना निदेशक होने का गौरव प्राप्त है। मंगलयान और चंद्रयान-2 जैसे महत्वपूर्ण मिशन के अलावा उन्होंने इसरो सैटेलाइट सेंटर के डिजिटल सिस्टम ग्रुप में टेलीमेट्री और टेलकमांड डिवीजनों का नेतृत्व किया। मुथैया कार्टोसैट-1, ओशनसैट-2 और मेघा-ट्रॉपिक्स सहित कई उपग्रहों के लिए उप परियोजना निदेशक और सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए डेटा ऑपरेशन प्रबंधक रहीं। मुथैया वनिता को साल 2006 में सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
खुशबू मिर्जा
माँ ने किया बेटी को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष कहते हैं, एक पुरुष को पढ़ाने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है, जबकि एक स्त्री पढ़ले तो पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है. दरअसल, खुशबू जब महज 7 साल की थीं तभी पिता का साया सिर से उठ गया.घर में खुशबू के अलावा बड़ा भाई खुशतर मिर्जा और छोटी बहन महक थे. खुशबू की मां फरहत मिर्जा मुरादाबाद से स्नातक थीं. तालीम की अहमियत समझती थीं. ऐसे में उन्होंने तीनों बच्चों को बेहतर तालीम देने का बीड़ा उठाया. उनकी परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी. फरहत मिर्जा ने तीनों बच्चों का दाखिला वहां के सबसे अच्छे स्कूल कृष्णा बाल मंदिर में करवाया. खुशबू के पिता सिकंदर मिर्जा का पेट्रोल पंप था. उनके इंतकाल के बाद मां फरहत ने परंपरागत बेड़ियां तोड़कर पेट्रोल पंप का कामकाज सम्भाला. इसके लिए उन्हें समाज के ताने भी सुनने पड़े, पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की.
पिता थे प्रगतिशील विचारों के
खुशबू के पिता सिकंदर मिर्जा स्वयं इंजीनियर थे. अपने बच्चों को भी इंजीनियर बनाने के सपने देखते थे. एक छोटे शहर के पारंपरिक मुस्लिम समुदाय के परिवार के लिए बेटे के साथ बेटियों को भी इंजीनियर बनाने का विचार ही अपने आप में बहुत हटकर है वो भी आज से करीब 35साल पहले. मगर खुशबू के पिता की यही प्रगतिशील सोच और उनकी मां फरहत की खुद की तालीम ही फरहत के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा और ताकत बनी. पति के अचानक गुजर जाने के बाद इस ताकत ने उन्हें टूटने से बचा लिया. स्वर्गीय सिकंदर मिर्जा और फरहत के तीनों बच्चों ने इंजीनियरिंग की.
बहुआयामी प्रतिभा की धनी
30 जुलाई, 1985 को जन्मी खुशबू ने शहर के कृष्णा बाल मंदिर स्कूल से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की. उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एमएमयू) से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग से बीटेक किया. खुशबू अपने बैच की गोल्ड मेडलिस्ट रहीं. खुशबू की खेलों में बचपन से रुचि रही. वह जिला स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान खेलकूद में हिस्सा लेती रहती थीं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बीटेक की पढ़ाई के दौरान खुशबू ने छात्र संघ चुनाव में हिस्सा लिया. वह एमएमयू में छात्र संघ चुनाव लड़ने वाली पहली लड़की बनीं. उन्हें चुनाव में कामयाबी तो नहीं मिली, पर वह अन्य लड़कियों के चुनाव में हिस्सा लेने के लिए प्रेरणा बन गईं.
वैज्ञानिक बनने की चाहत डॉ कलाम थे प्रेरणा
बीटेक पूरा करने के बाद उन्हें अडोबी कंपनी में नौकरी मिली. चूंकि उनके भीतर वैज्ञानिक बनने की इच्छा थी, लिहाजा उन्होंने अपना ध्यान अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने में लगाया. खुशबू 2006 में अपनी मेहनत के दम पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान में तकनीशियन के पद पर पहुँच गईं और उस टीम का हिस्सा बनी जो सैटेलाइट से डाटा ग्रहण करने के लिए उपकरण और सॉफ्टवेयर बना रहा था. आखिरकार 2008 में चंद्रयान-1 मिशन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके बाद उन्हें चंद्रयान-2मिशन के लिए चुना गया. खुशबू 2012 के इसरो के राष्ट्रीय सम्मेलन की महत्वपूर्ण वक्ता थीं. इसके अलावा उन्होंने इसरो की तरफ से कई वैज्ञानिक कार्यक्रमों में शिरकत की.
आस्था और विज्ञान का मेल
चंद्रयान-2 मिशन को सफल बनाने में खुशबू ने एक साल और दस महीने तक कड़ी मेहनत की. इसरो में काम करते हुए खुशबू ने रमजान के पाक महीने में रोजे रखे. नमाज पढ़ी. परीक्षण केंद्र में ही ईद मनाई. खुशबू के बड़े भाई के मुताबिक, उनका परिवार जितना प्रगतिशील है उतना ही आस्था और परंपराओं का सम्मान करने वाला है. लेकिन दकियानूसी नहीं है.
अमरोहा की बच्चियों बनी प्रेरणा
खुशबू के बड़े भाई खुशतार मिर्जा के मुताबिक, उन सबका बचपन बड़ा संघर्षमय रहा. खास तौर से खुशबू जब इसरो जा रही थीं, उस दौरान मां ही उनके साथ भागदौड़ करती थीं. साथ ही समाज का विरोध भी झेलती थीं. चूंकि बुर्का पहनकर खुशबू के लिए बाहर की भागदौड़ मुश्किल थी. ऐसे में मां ने उन्हें जीन्स पहनने देने का साहस किया. खुशतर बताते हैं कि चंद्रयान-1मिशन के बाद जब अमरोहा के एक अखबार में राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के साथ खुशबू का फोटो छपा तब जैसे समाज की नजरों उनके सारे गुनाह माफ हो गए.
आज अमरोहा की बच्चियों के लिए खुशबू प्रेरणा हैं. लोग अब बच्चियों को स्कूल भेजना चाहते हैं ताकि देश की तरक्की में उनकी भी भागीदारी हो. खुशबू को कई शिक्षण संस्थाओं में बतौर मुख्य अतिथि और वक्ता के तौर पर बुलाया जाता है.
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का संदेश
डॉ कलाम की आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर के मुख्य अंश में उनका युवाओं को यही संदेश है कि "हम सब एक विशेष क्षमता लेकर इस दुनिया में आए हैं।हमें ईश्वर ने किसी कार्य के लिए भेजा है। सभी के भीतर एक दैवीय शक्ति और ईश्वर का तेज छुपा है, हमारी कोशिश इस तेज पुंज को पंख देने की रहनी चाहिए। जिससे यह चारों तरफ अच्छाई का प्रकाश फैला सके।
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